मंगलवार, 21 मई 2013

समुद्र तट पर देह और आत्मा : एक संवाद

पिछली पोस्ट के क्रम को आगे बढ़ाते हुए विश्व कविता के  उर्वर हिस्से से आज एक बार  फिर पोलिश कवि अन्ना स्विर ( १९०९ - १९८४ ) की  एक और छोटी - सी  यह  कविता......


अन्ना स्विर की कविता

समुद्र तट पर देह और आत्मा : एक संवाद
(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)

आत्मा समुद्र तट पर
बाँच रही है दर्शनशास्त्र की एक किताब
और पूछती है देह से :
बताओ तो
किसने किया है हमें संग - साथ ?
कहती है देह :
अरे , यह समय है धूप सेंकने का।

आत्मा पूछती है देह से :                                                              
क्या सचमुच
नहीं है मेरा कोई अस्तित्व?
कहती है देह :
देखो , मैं धूप सेंक रही हूँ अपने घुटनों पर।

आत्मा फिर पू्छती है देह से :
बताओ तो
मुझमें और तुममें
कब होगी मरण की शुरुआत ?
देह को आ जाती है हँसी :
शुक्रिया, अब हो गई है काम भर धूप सिंकाई।
---
( चित्र : नवल किशोर की मिक्स्ड मीडिया पेंटिंग , गूगल छवि से साभार)

सोमवार, 13 मई 2013

कपड़े धोती हुई कवयित्री

अध्ययन और अभिव्यक्ति की साझेदारी के इस ठिकाने पर आज एक बार फिर पढ़ते हैं पोलिश कवि अन्ना स्विर्सज़्यान्स्का ( १९०९ - १९८४ ) की  एक और कविता ।अन्ना स्विर्सज़्यान्स्का जिसे 'अन्ना स्विर' जैसे छोटे नाम से भी जाना जाता है। दूसरे विश्वयुद्ध के समय वह पोलिश प्रतिरोध आन्दोलन से जुड़कर नर्स के रूप में उपचार सेवा कार्य  में संलग्न रहीं तथा  भूमिगत प्रकाशनों से भी सम्बद्ध रहीं। बाहरी दुनिया के असंख्य कविता प्रेमियों से अन्ना का परिचय  करवाने में लियोनार्ड नाथन और  चेस्लाव मिलेश की  बड़ी भूमिका रही है।  आइए , आज  पढ़ते - देखते हैं यह छोटी - सी कविता :


अन्ना स्विर की कविता

कपड़े धोती हुई कवयित्री
(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)

बहुत हुई टाइपिंग
आज कपड़े धो रही हूँ मैं
पुराने तरीके से
   -मैं धो रही हूँ
   -पछीट रही हूँ
   -निचोड़ रही हूँ
वैसे ही जैसे कि धोया करती थीं          
मेरी तमाम परदादियाँ - परनानियाँ                                                              
इत्मीनान से।

सेहत के लिए अच्छा है कपड़े धोना
और हो जाता है काम का काम भी।
लेकिन एक धुली हुई कमीज की तरह
हमेशा संशयपूर्ण होता है लिखना
मानो किसी सादे कागज पर
टाइप कर दिए गए हों
तीन प्रश्नवाचक चिह्न।
---
(* अन्ना स्विर की दो कवितायें इसी ब्लॉग पर यहाँ  देखी जा सकती हैं। ** चित्र : कार्लो कैनेवरी की पेंटिंग 'मांक्स हैंगिंग लांड्री' ; गूगल छवि से साभार।)

मंगलवार, 7 मई 2013

कविता की नई हस्त-पुस्तिका : मार्क स्ट्रैंड

इस बीच  ब्लॉग  पटल पर अपनी लिखत - पढ़त - सुनत - गुनत का कुछ  साझा किए हुए  लंबा समय हो गया। यह क्योंकर हुआ और कैसे हुआ? इस बात से क्या करना। बस अंतराल हुआ , हो गया। वैसे भी इस आभासी  ठिकाने पर  गालिबे खस्त: के बगैर कौन से काम बंद थे यहाँ !  आज प्रस्तुत  है कैनेडियाई - अमरीकी  कवि मार्क स्ट्रैंड की एक कविता जिसका शीर्षक है 'कविता की नई हस्त-पुस्तिका'। यह कविता तो है ही ; कविता लेखन , पठन - पाठन और उसे जीने , बरतने की एक  बेहद महत्वपूर्ण + मारक + मार्मिक + मनोरंजक  सुबोधिनी टीका भी। इसमें कविता की नियमावली , नीति , नैतिकता , निष्ठा व नव्यता  के इक्कीस  क्रमवार सूत्र हैं। वैसे ये सूत्र केवल कविता के / कविता के लिए ही हैं ; यह कहना भी एक तरह का सरलीकरण  ही होगा। कुल मिलाकर मुझे तो यही लगता है मार्क शायद यह कहना / जताना चाहते हैं कि कविता केवल शब्द भर नहीं है ....आप इसे देखें , पढ़े और  जरूरी समझें तो  अपनी राय भी  दें.....>>>



कविता की नई हस्त-पुस्तिका / मार्क स्ट्रैंड
(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)

१-
 अगर कोई शख्स समझने लगा है कविता को
तो समझो लो, उस पर आयद होने वाली हैं मुसीबतें।

२-
अगर कोई शख्स रहने लगा है एक कविता के संग
तो वह मरेगा निपट अकेला।

३-
अगर कोई शख्स रहने लगा है दो कविताओं के संग
तो वह करेगा बेवफ़ाई किसी के साथ।

४-
अगर कोई शख्स गर्भस्थ करता है एक कविता को
तो उसका एक बच्चा होगा कम।

५-
अगर कोई शख्स गर्भस्थ करता है दो कविताओं  को
तो उसके दो  बच्चे होंगे कम।

६-
अगर कोई शख्स लिखते समय धारण करता है मुकुट
तो उसकी होगी पहचान अगले वक़्तों में।

७-                                                                                                                                     
अगर कोई शख्स लिखते समय धारण  नहीं करता है मुकुट
तो वह धोखा देगा स्वयं को ही।

८-
अगर कोई शख्स कविता पर होता है क्रुद्ध
तो उससे घॄणा करेंगे पुरुष।

९-
अगर कोई शख्स कविता पर होता है लगातार क्रुद्ध
तो उससे घृणा करेंगी स्त्रियाँ।

१०-
अगर कोई शख्स खुलेआम करेगा कविता पर दोषारोपण
तो उसके जूतों में भर जाएगी पेशाब।

११-
अगर कोई शख्स ताकत के लिए बिसार देगा कविता को
तो उसके पास आ जाएगी बेहिसाब ताकत।

१२-
अगर कोई शख्स अपनी कविताओं को लेकर हाँकेगा डींग
तो उससे प्रेम करगी मूर्ख - मंडली।

१३-
अगर कोई शख्स अपनी कविताओं को लेकर हाँकेगा डींग और मूर्खों को करेगा प्यार
तो वह लिख न सकेगा कुछ खास।

१४-
अगर कोई शख्स कविताओं से ध्यान आकृष्ट करने की करेगा लाससा
तो वह होगा चाँदनी रात में चमकते उल्लू की मानिन्द।

१५-
अगर कोई शख्स लिखता है कविता और साथी की कविताओं पर देता है दाद
उसे मिलेगी एक खूबसूरत प्रेयसी।

१६-
अगर कोई शख्स  लिखता है कविता और साथी की कविताओं पर देता है दाद लगातार
तो उसे अपनी  प्रेयसी को सैर कराने की होगी खुली छूटा।

१७-
अगर कोई शख्स दूसरों की कविताओं को बताएगा अपनी
तो उसका दिल सूजकर हो जाएगा दुगने आकार का।

१८-
अगर कोई शख्स  अपनी कविताओं को छोड़ देगा निर्वसन
तो उसको डर सताएगा मौत का।

१९-
अगर किसी शख्स  को डर सताएगा मौत का
तो उसे बचायेंगी कवितायें।

२०-
अगर किसी शख्स  को डर नहीं सताएगा मौत का
तो उसे बचा सकती है या नहीं भी बचा सकती हैं कवितायें।

२१-
अगर कोई शख्स पूरी करता है एक कविता
तो भावावेग से भीगे जागरण में नहाई होगी उसकी नींद
और एक कोरा सफ़ेद कागज दे रहा होगा चुम्बन।