रविवार, 10 नवंबर 2013

मैं एक आदमी को जानता हूँ : येहूदा आमीखाई की दो कवितायें

ठीक है ,  यह कहा जाता है कि जो (चीज) अनुवाद में खो जाए वही कविता है लेकिन यह भी सच है कि अनुवादों के जरिये ही दुनिया भर की कवितायें दुनिया भर की भाषाओं में यात्रा करती रहती हैं और कविता प्रेमियों की सोच - समझ की आवाजाही के वास्ते एक साझा - सहज - समतल  पुल मुहैया कराने का काम करती रहती हैं। अनुवादों ने एक काम यह भी किया है कि बहुत सारे कवियों को उनकी भाषाओं की चौहद्दी से  निकाल  कर उनके  प्रेमियों व पाठकों की निज की भाषा का अपना कवि बना दिया है। हिब्रू भाषा  के  विश्व प्रसिद्ध कवि येहूदा आमीखाई ( १९२४ - २०००) उन कवियों में से हैं  जिन्हें हिन्दी  के कविता  प्रेमियों की बिरादरी  ने बहुत मान दिया है।  इस ठिकाने पर  विश्व कविता के की समृद्ध थाती से  पसंद की गईं कविताओं की  अनुवाद - साझेदारी के सिलसिले को आगे बढ़ाने के क्रम में आज प्रस्तुत हैं उनकी की  दो छोटी कविताये :


येहूदा आमीखाई  की दो कवितायें  
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )

 01- किसी को भूलना

किसी को भूलना
जैसे कि  बत्ती बंद करना भूल जाना पिछवाड़े की
सो , वह जली रहती है
सारा - सारा दिन अगले दिन।

लेकिन यह रोशनी ही है
जो कि आपको दिलाती है याद।

02- मैं एक आदमी को जानता हूँ

मैं एक आदमी को जानता हूँ
जिसने तस्वीर उतारी उस दृश्य की
जो कि उसे दिखा उस कमरे की खिड़की से
जहाँ किया गया था प्यार

उसने तस्वीर उतारी
लेकिन उस स्त्री के चेहरे की  नहीं
जिससे इसी जगह किया गया था प्यार।

1 टिप्पणी:

अनुपमा पाठक ने कहा…

"लेकिन यह रोशनी ही है
जो कि आपको दिलाती है याद।"
***
अद्भुत!
सुन्दर अनुवाद!